Saturday 24 June 2017

कविता - छाओं की तलाश

कविता - छाओं की तलाश 

बच्चे की गाडी की प्रतीक्षा करते 
गर्मी की एक दोपहरी में 
मैं झुलस रहा था गर्मी में 
तब घूर रहा था सूरज मुझको
चिलचिलाती आँखों से  

जब ढूंढती मेरी आँखों को 

छाओं मिली ना दूर तलक
जब वृक्ष तो क्या इक पौधे की 
झलक मिली ना दूर तलक 

तब सहसा वृक्षों के होने का    
महत्त्व मुझको याद आया 
तब सहसा मुझको पर्यावरण पर 
पढ़कर भूला 
हर इक पाठ याद आया 

तब याद आये वो भी दिन 
जब सड़क किनारे धूप में 
ठंडक देते थे वो पेड़ 
जो काट दिए गए थे 
सड़क चौड़ी करने के समय  

फिर याद आये मुझे वो भी दिन 
जब बच न सके 
बिन पानी के 
सड़क किनारे वो पौधे नन्हे 

अब किसको हम फ़रियाद करें 
जब अपनी जिम्मेवारी है 
तो आओ ये संकल्प करें 
कि हरियाली लाने का  
निरंतर हम प्रयत्न करें 


- स्वर्ण दीप बोगल 

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