Wednesday 7 June 2017

कविता - मेरी प्रेरणा

कविता

मेरी प्रेरणा

कभी कभी थक जाता हूँ
रोज़ाना दफ्तर की फाइलों 
की खाक छान छान कर
वही कुर्सी वही टेबल देख देखकर

कभी मैं निराश हो जाता हूँ
अपने काम से दफ्तर आये 
लोगों के चेहरों की मायूसी देखकर
उनके काम न कर पाने की 
अपनी असमर्थता सोचकर

कभी मैं ऊब जाता हूँ
ज़िन्दगी की कश्मकश देखकर
रोज़मर्रा की परेशानियां झेलकर
कभी न खत्म होने वाली
ज़िन्दगी की दौड़ दौड़ते दौड़ते

कभी मैं बहुत आहत होता हूँ
जब लोगों को अपने कर्तव्यों
की अवहेलना करते देखता हूँ
झूठ बेईमानी व भ्रष्टाचार पे
भाषण देने वालों को 
इन्ही सब में लिप्त देखता हूँ

जब बस टूटने को होता हूँ
इन सब बातों से हो परेशान
तो देखता हूँ सूर्य को
देते हुए उजाला व ऊष्णता सबको
बिना किसी राग द्वेष या भेद भाव के
निरंतर सदियों  से कर्मठ भाव से

जब देखता हूँ मधुमखियों को 
पुष्पों से शहद बटोरते 
बिना चोरी होने के भय से

जब देखता हूँ चिड़िया को
एक एक तिनका चुन घोंसला बनाते
बार बार तोड़े जाने के बावजूद

तो मैं प्रेरित होता हूँ
फिर से नई ऊर्जा से 
अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करने को
किसी नकारात्मकता से प्रभावित हुए बिना
हर मुश्किल का सामना करने को

- स्वर्ण दीप बोग़ल

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