Saturday, 17 June 2017

कविता - अच्छे दिनों की उम्मीद

कविता - अच्छे दिनों की उम्मीद

मैंने धूप न देखी
न देखी लंबी लाइन
मैने तोड़ी दिहाडी
ताकि कर सकूं मतदान
फिर एक बार,
वही अच्छे दिनों की उम्मीद लिए

गरीबी और महंगाई से
भ्रष्टाचार के कोढ़ से
मैं था परेशान
इसीलिए फिर करने चल पड़ा मतदान
अच्छे दिनों की उम्मीद लिए

सम्मानित जीवन की चाह में
काम के बेहतर अवसरों की उम्मीद लिए
पारदर्शी माहौल की आस में
बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए
फिर करने चल पड़ा मतदान
अच्छे दिनों की उम्मीद लिए

मगर अच्छे दिनों का इंतजार
अब लंबा हो चला है
एक एक वादा अब धुंधला लग रहा है
लगता है फिर से शुरू होगा वही खेल
एक नए मतदान से
अच्छे दिनों की उम्मीद लिए

- स्वर्ण दीप बोग़ल

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