#मैं_पेड़
फल देता हूँ,फूल भी देता,
गृह निर्माण को लकड़ी हूँ देता,
प्राणदायक वायु भी देता।
तपती गर्मी की दोपहरी में,
अपनी छाओं से ठंडक देता,
बाढ़ों में बहती मिट्टी को
जड़ों से अपनी मैं जकड़े रखता।
ज़िंदा हुँ या कटा हुआ मैं,
मेरी काया का हर इक हिस्सा,
तना, जड़ें या हर पत्ता,
इंसानों के काम ही आता।
मानवता का सच्चा सेवक
क्या-क्या न मैं कष्ट उठाता
अपने भविष्य के लिए ही
अंधाधुंध हमें न काटो,
मैं पेड़ ये अर्ज़ सुनाता।।
#स्वर्ण_दीप_बोगल
फल देता हूँ,फूल भी देता,
गृह निर्माण को लकड़ी हूँ देता,
प्राणदायक वायु भी देता।
तपती गर्मी की दोपहरी में,
अपनी छाओं से ठंडक देता,
बाढ़ों में बहती मिट्टी को
जड़ों से अपनी मैं जकड़े रखता।
ज़िंदा हुँ या कटा हुआ मैं,
मेरी काया का हर इक हिस्सा,
तना, जड़ें या हर पत्ता,
इंसानों के काम ही आता।
मानवता का सच्चा सेवक
क्या-क्या न मैं कष्ट उठाता
अपने भविष्य के लिए ही
अंधाधुंध हमें न काटो,
मैं पेड़ ये अर्ज़ सुनाता।।
#स्वर्ण_दीप_बोगल