Wednesday 2 August 2017

कविता - मेरे अहसासों के मोती

कविता - मेरे अहसासों के मोती

हम तो बस प्रयास कर रहे हैं
कि शब्दों की माला में
पिरो पाएं अपने अहसासों के मोती
जाने उन्हें ऐसा क्यों लगता है
कि हम कवि हो गए हैं

हम तो प्रयासरत थे कि
जीवन की खट्टी-मीठी अनुभूतियों को 
उतार पाएं कागज़ के टुकड़े पे
जाने उन्हें ऐसा क्यों लगता है
कि हम कवि हो गए हैं

हम तो चाहते थे कि
कुछ सामाजिक कुरीतियों को
उजागर कर पाएं किसी तरीके से
जाने उन्हें ऐसा क्यों लगता है
कि हम कवि हो गए हैं

हम तो कर रहे हैं बात भाईचारे की
ताकि इंसानियत ज़िंदा रह सके
कुछ तुझमे भी, कुछ मुझमे भी
जाने उन्हें ऐसा क्यों लगता है
कि हम कवि हो गए हैं

- स्वर्ण दीप बोगल

2 comments:

  1. Aap kavi ho chuke SD..maan jao iss baat ko...only a few are blessed with the art of expressing themselves..u r one of them...itne khoobsoorat ehsaas ..nd khubsoorat lafzon ke saath...well done dear...bless you...

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