Monday 28 August 2017

कविता - सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते

ये कैसा चला है दौर
ये कैसी है हवा चली 
जहां सत्यमेव जयते को 
माना जाता था संस्कार कभी,
वहीं सत्य साबित करने में मुश्किल पड़ी

जो सत्य की गई थी लौ जगाई
वो लौ तो आज ओझल हो चली
क्योंकि सत्य के रक्षकोंं के लिए
राह में खड़ी हैं मूसीबतें बड़ी,
जान की बाज़ी भी उनको कभी लगानी पड़ी।

सत्य और न्याय की डगर
जो आज लगती है आज मुश्किल बड़ी
कभी आसान तो पहले भी न थी
मगर सत्य के सिद्धान्त पे चलने वालों के
साहस में भी कभी कमी न थी

तो गर जारी रखनी है हमें
सत्य व न्याय की लंबी जंग,
दृढ़ संकल्प से बिना परवाह किये,
राह में आने वाली परेशानियों के,
सदा रहना होगा सत्य के अंग-संग।

- स्वर्ण दीप बोगल

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