Sunday 20 August 2017

कविता -गतिमान जीवन

गतिमान जीवन

माना कि रूसवाईयां भी 
मिलती हैं जीवन में कभी,
ये माना कि हर दांव ज़िन्दगी का
पड़ जाता है उल्टा कभी,
ये भी माना कि मुकम्मल जहाँ 
सभी को है मिलता नहीं,
मगर जीवन तो गतिमान है
कहीं ठहर जाना कहां इसका काम है।

माना सदा हर किसी के लिए
परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती,
हताश होकर निष्क्रिय हो जाने से
ओझल होने लगती है आशा की ज्योति,
इसीलिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी
कर्म पथ पर रहना अडिग भूल नहीं होती,
क्योंकि जीवन तो गतिमान है,
कहीं ठहर जाना कहां इसका काम है।

सत्य, निष्ठा व न्यायसंगत पथ पर
बिना रुके जब हम चलते ही जायेंगे,
उम्मीद है कि कभी तो मंज़िल पाएंगे।
आँखों से ओझल अपने कर्म पथ पर,
मन में बिना किसी लोभ, मोह व स्वार्थ के,
आस का दीपक कर प्रज्वलित बढ़ते ही जायेंगे
क्योंकि जीवन तो गतिमान है,
कहीं ठहर जाना कहां इसका काम है।।

-स्वर्ण दीप बोगल

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